दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा

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दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा
  • दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर होती है|इस कारण स्वाभाविक रूप से दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की अरब सागर शाखा पश्चिमी घाट से टकरा जाती है |
  • अरब सागर शाखा पश्चिमी घाट पर्वत से टकराकर पूरे पश्चिमी तटीय मैदान पर वर्षा करती है, लेकिन उत्तर-पूर्व की ओर प्रवाहित होने के कारण ही बंगाल की खाड़ी की शाखा पूर्वी घाट पर्वत से नहीं टकरा पाती है, क्योंकि बंगाल की खाड़ी की शाखा पूर्वी घाट के समानान्तर उत्तर की ओर प्रवाहित हो जाती है| इसके चलते न तो पूर्वी घाट से टकरा पाती है और न ही बंगाल की खाड़ी शाखा पूर्वी तटीय मैदान में वर्षा कर पाती है |
  • जहाँ अरब सागर शाखा द्वारा पश्चिमी घाट पर्वत से टकराकरकेरल के मालाबार तट पर जून से लेकर सितम्बर तक मूसलाधार वर्षा होती है| वहीं इसके पूर्व में कुछ ही किमी. दूर स्थित तमिलनाडु के कोरोमण्डल तट पर इन्हीं महीनों में बिल्कुल सूखा और शान्त रहता है |
  • बंगाल की खाड़ी शाखा पूर्वी घाट के समानान्तर उत्तर की ओर प्रवाहित होते हुए सबसे पहले मेघालय के शिलांग पठार से टकराती है |इससे शिलांग पठार पर तीन पहाड़ियों गारो, खासी और जयन्तिया पर वर्षा प्राप्त होती है | इनमें से खासी पहाड़ी पर सबसे ज्यादा वर्षा होती है |
  • खासी पहाड़ी पर स्थित चेरापूंजी और मासिनराम में लगभग 1080 सेमी. से भी अधिक वार्षिक वर्षा होती है, जबकि मालाबार तट पर अरब सागर शाखा द्वारा लगभग 250 सेमी. वार्षिक वर्षा होती है |
  • मासिनराम दुनिया में सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करने वाला क्षेत्र है |
  • बंगाल की खाड़ी शाखा मेघालय के शिलांग पठार से टकराने के पश्चात् असम की सूरमा घाटी के रास्ते से असम में प्रवेश करती है और ब्रह्मपुत्र की घाटी में पहुँचती है |
  • ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी तीन तरफ से पहाड़ों से घिरे होने के कारण बंगाल की खाड़ी शाखा की आर्द्र हवाओं को निकलने का रास्ता नहीं मिल पाता है, जिसके चलते ये हवाएँ तेजी से ऊपर की ओर उठती हैं और एडियाबेटिक ताप ह्रासके कारण तापमान में कमी होती है और ब्रह्मपुत्र घाटी में अच्छी खासी वर्षा करती है |
  • हवाएँ जब ऊपर उठती हैं तो उनके तापमान में गिरावट आती है और जब हवाओं के तापमान में गिरावट आती है तो हवाओं की सापेक्षिक आर्द्रता बढ़ जाती है |
  • शिलांग पठार से टकराने के पश्चात् बंगाल की खाड़ी की दूसरी शाखा हुगली नदी के मुहाने के पास से उत्तर भारत के मैदान में प्रवेश करती है और कलकत्ता, पटना, प्रयागराज (इलाहबाद) और कानपुर होते हुए दिल्ली तक पहुँचती है |
  • उत्तर भारत के मैदान में बंगाल की खाड़ी शाखा द्वारा उत्तर भारत मैदान में प्राप्त होने वाली वर्षा पूर्व से पश्चिमकी तरफ अर्थात् कलकत्ता से दिल्ली की तरफ घटती चली जाती है, क्योंकि पूर्व से पश्चिम तक जाने में हवाओं में नमी धीरे-धीरे घटती चली जाती है और वर्षा भी घटती चली जाती है |उदाहरण के लिए -कलकत्ता में 150 सेमी०, पटना में 100 सेमी०,प्रयागराज (इलाहबाद) में 70 सेमी० और दिल्ली में 56 सेमी० वार्षिक वर्षा होती है |
  • दिल्ली अन्तिम स्थल है, जहाँ बंगाल की खाड़ी शाखा द्वारा वर्षा होती है| दिल्ली से आगे बढ़ने पर इन हवाओं में आर्द्रता में कमी के कारण इन हवाओं से वर्षा नहीं होती है |
  • राजस्थान में अरावली पर्वत, बंगाल की खाड़ी शाखा के मार्ग में पड़ता है| परिणामस्वरूप अरावली पर्वत से टकराकर इन हवाओं द्वारा वर्षा होनी चाहिए थी,किन्तु वर्षा नहीं होती है| इसके दो कारण हैं –

(i)     दिल्ली से आगे बढ़ने पर इनमें नमी की मात्रा बहुत घट चुकी होती है |

(ii)    राजस्थानका क्षेत्र अन्तः उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (ITCZ) होने के कारण बहुत गर्म है | इस गर्म भूमि पर जब बंगाल की खाड़ी शाखा पहुँचती है तो हवाएँ गर्म हो जाती हैं, जिससे हवाओं की  सापेक्षिक आर्द्रता घट जाती है और ये हवाएँ राजस्थान में वर्षा नहीं कर पाती हैं|

दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा
दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की बंगाल की खाड़ी शाखा
  • इस प्रकार स्पष्ट है किराजस्थान में न तोअरब सागर शाखा वर्षा कर पाती है और न ही बंगाल की खाड़ी शाखा वर्षा कर पाती है|
  • अरब सागर शाखा राजस्थान में इसलिए वर्षा नहीं कर पाती है, क्योंकि ये हवाएँ अरावली पर्वत से टकराने की अपेक्षा अरावली पर्वत केसमानान्तर निकल जाती हैं|
  • दूसरी तरफ बंगाल की खाड़ी शाखा अरावली पर्वत श्रेणी से टकराती तो हैं लेकिन नमी की मात्रा बहुत कम हो जाती है, इसलिए वर्षा नहीं होती है,जिसके कारणराजस्थान एक सूखा ग्रस्त राज्य है |
  • फेरल के नियमके अनुसार,उत्तरी गोलार्द्ध में हवाएँ अपनी दाहिने ओर मुड़ने का प्रयास करती हैं|
  • इस नियम के अनुसार जब बंगाल की खाड़ी शाखा उत्तर भारत के मैदान में प्रवेश करती है, तो ये शिवालिक श्रेणी की तरफ बढ़ने का प्रयास करती है | यही कारण है कि इन हवाओं द्वारा शिवालिक श्रेणी के दक्षिणी ढालों पर वर्षा की अच्छी खासी मात्रा प्राप्त होती है |
  • वहीं दूसरी तरफ हवाओं के दाहिने ओर मुड़ने की प्रवृत्ति के चलते ही प्रायद्वीपीय भारत के पठार के उत्तरी ढाल पर वर्षा बहुत कम हो पाती है | यही कारण है कि उत्तर-प्रदेश तथा मध्य-प्रदेश में स्थितबुन्देलखण्ड प्रदेश एक सूखाग्रस्त क्षेत्र है, जहाँ सिंचाई सम्भव ही नहीं है, क्योंकि वहां वर्षा प्राप्त ही नहीं होती है |

Note – पूर्वी तटीय मैदान में प्राप्त होने वाली वर्षा बंगाल की खाड़ी में बनने वाले उष्ण चक्रवातों से होती हैं |

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Dharmendra Ràjput
October 23, 2021, 11:29 am

Hindi

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SITESH KUMAR
June 17, 2020, 9:44 am

Very nice sir

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Sonali
May 10, 2020, 1:39 pm

Mujhe geo smjh ni ati thi.pr ab bhut acchi trh sare topic smjh ane lge.thank u sir

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Arun kumar yadav
April 28, 2020, 8:41 am

आलोक सर भूगोल को आपने सरल बना दिया

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Monu rai
April 26, 2020, 3:26 pm

लोगों को लिखने में इतना समस्या क्यो हो रहा है भाई लिखने का तो अभ्यास करना ही चाहिए जिनको भी सिविल परीक्षा देना है, मांग ये होनी चाहिए कि विश्व भूगोल का भी नोट्स मिल जाये इसी तरह टारगेट विथ आलोक sir द्वारा तो और अच्छा होता सभी के लिए

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Rahul
February 28, 2020, 8:19 am

PDF dawnlod kaise kare

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Prem ratan meena
January 30, 2020, 7:20 pm

Updated