प्रमुख विद्रोह

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  • औपनिवेशिक शासन के दौरान 1857 का विद्रोह न तो पहला विद्रोह था और न ही यह एकमात्र विद्रोह था बल्कि अनेक विद्रोह अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ घटित हुए|बंगाल में 1757 ई० के बाद जैसे ही ब्रिटिश प्रभुसत्ता की स्थापना हुई, उसी समय भारत में अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की श्रृंखला प्रारम्भ हो गई थी|ऐसा माना जा सकता है कि 1857 का विद्रोह अंग्रेजी शासन के खिलाफ सबसे बड़ा विद्रोह था|
  • 1857 के बाद भी विद्रोह की श्रृंखला निरंतर जारी रही|इनमेसे कुछ विद्रोह नागरिक विद्रोह थे जबकिकुछ विद्रोह जनजातियों द्वारा किये गये विद्रोह थे,कुछ विद्रोह ऐसे भी थे जो धार्मिक स्वरुप को लिए हुए थे अर्थात किसी विशेष संप्रदाय के हित के लिए, विशेष संप्रदाय के लोगों के द्वारा, यह विद्रोह किया गया था और इन विद्रोहों का नेता कोई धार्मिक पुरुष हुआ करता था और धर्मं पुरुष द्वारा चलाये गये संप्रदाय के अनुयायी उस विद्रोह के सैनिक हुआ करते थे| इसे ही धार्मिक स्वरुप वाला विद्रोह कहा जाता है|

धार्मिक स्वरुप वाला विद्रोह

  • धार्मिक स्वरुप वाला विद्रोहमुख्यतः तीन सम्प्रदायों के तहत घटित हुए –
  • हिन्दू सम्प्रदाय
  • मुस्लिम संप्रदाय
  • सिक्ख संप्रदाय

 

  • हिन्दू संप्रदाय के अंतर्गत घटित हुआ प्रमुख विद्रोह संन्यासी विद्रोह था|
  • मुस्लिम संप्रदाय के अंतर्गत तीन प्रमुख विद्रोह हुए –
  • पागलपंथीआन्दोलन
  • फरायजीआन्दोलन
  • वहाबी आन्दोलन

 

  • सिक्ख संप्रदाय के अंतर्गत प्रमुख विद्रोह कूका आन्दोलन घटित हुआ था|
  • ब्रिटिश शासन के खिलाफ सबसे पहला विद्रोह,1763 ई० में घटित संन्यासी विद्रोह था| संन्यासी विद्रोह बंगाल क्षेत्र में घटित हुआ था|अंग्रजों को जब बंगाल पर प्रशासनिक सत्ता प्राप्त हुई तो उन्होंने तीर्थ यात्रा पर कर लगा दिया|तीर्थ यात्रा पर लगे कर के खिलाफ हिन्दूसंन्यासी नाराजहो गये और विद्रोह पर उतारू हो गये|
  • संन्यासी लोग शंकराचार्य के अनुयायी थे|वॉरेनहेस्टिंग्स ने इस विद्रोहका दमन कर दिया|19वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में लिखी गई उपन्यास आनंदमठ का कथानक संन्यासी विद्रोह पर ही आधारित है|इसके लेखक बंकिमचन्द्र चटर्जी हैं|
  • अंग्रेजों के खिलाफ मुस्लिम संप्रदाय के द्वारा तीन विद्रोह किये गये,पागलपंथी, फरायजी और वहाबी आन्दोलन|मुग़ल शासन इस्लाम धर्म को मानता था|अंग्रजों द्वारा मुग़ल शासन के समाप्ति को मुस्लिम संप्रदाय के लोगों ने कहीं न कहीं से इसे भावनात्मक रूप से मुस्लिम शासनकी समाप्ति के रूप में देखा|इससे इनकी भावनाएं आहत हुई और इन्होने यह निश्चय किया कि भारत से अंग्रेजों को हटाकर फिर से मुग़ल शासन की स्थापना की जाएगी|
  • पागलपंथी विद्रोह बंगाल में 1813 ई० में घटित हुआ था|बंगाल में करमशाह नामक एक इस्लामी धर्मगुरु ने पागलपंथ नामक एक संप्रदायशुरू किया था|यह विशुद्ध रूप से एक धार्मिक संप्रदाय था, किन्तु इनके उत्तराधिकारी टीपू मीर, राजनैतिक उद्देश्यों से प्रेरित थे|1813 ई० में इन्होने खुद को राजा घोषित कर दिया और अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया| इस विद्रोह का भी दमन कर दिया गया और टीपू मीर मारा गया|
  • फरायज़ी आन्दोलन,1820 ई० में बंगाल में घटित हुआथा|बंगाल में हाजी सरियातुल्ला ने जो सम्प्रदायचलाया था, उसके अनुयायी फरायज़ी कहलाते थे|फरायज़ी सम्प्रदाय के लोग भारत से अंग्रेजों को भगा कर पुनः मुस्लिम शासन की स्थापना करना चाहते थे|हाजी सरियातुल्ला के बेटे दादुमीरथे|दादुमीर ने बंगाल में व्याप्त असंतोष का लाभ उठाना प्रारम्भ किया|
  • बंगाल में सबसे ज्यादा असंतोष भूराजस्व व्यवस्था के कारण उत्पन्न हुई थी| बंगाल में लॉर्ड कार्नवालिस ने 1793 ई० में भूराजस्व वसूली के लिए स्थाई बंदोबस्त व्यवस्था की स्थापना की थी, जिसे जमींदारी व्यवस्था, इस्तेमरारी व्यवस्था भी कहते थे|

 

जमींदारी व्यवस्था

 

  • अंग्रेजों ने किसानों से भूराजस्व की वसूली करने के लिए एक बिचौलिए के रूप में जमींदारों की नियुक्ति की थी|जमींदार किसानों से भूराजस्व की वसूली करते थे और 10/11वाँ भाग ये अंग्रेजों को देते थे तथा 1/11वाँभाग स्वयं अपने पास रखते थे|जमींदारकिसानों से जितना अधिक भूराजस्व की वसूली करते थे उनकी उतनी ही अधिक बचत होती थी|
  • जमींदारअधिक लाभ प्राप्त करने के लिए बंगाल मेंकिसानों का अधिक से अधिक शोषण करने का प्रयास किया, इससे बंगाल में किसानों के बीच असंतोष व्याप्त हो गया|दादुमीर ने किसानों में बढे असंतोष का लाभ प्राप्त करने का प्रयासकिया|दादुमीर ने लोगों को जमींदारों के विरुद्ध संगठित करने का प्रयास किया और किसानों से कर न देने के लिए कहा|
  • जमींदारों के खिलाफ विद्रोह करने का मतलब, अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करना था इसलिए अंग्रेजों ने इस विद्रोह को बर्दाश्त नहीं किया और अंततः इस आन्दोलन को भी दबा दिया गया|
  • वहाबी आन्दोलन, 1830 ई० में घटित हुआ था|अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की क्रांति के पहले घटित हुआ था|इस आन्दोलन का केंद्र पटना था|1857 के विद्रोह से पूर्व भारत में अंग्रेजों के खिलाफ जितने भी विद्रोह हुए थे, उन सभी मेंवहाबी आन्दोलन ने अंग्रेजों की प्रभुसत्ता को जबरदस्त चुनौती दी थी|इस आन्दोलन का क्षेत्र अत्यन्त ही व्यापक था और यह विद्रोह धार्मिक उद्देश्यों से प्रबल रूप से प्रेरित था|
  • इस आन्दोलनका उद्देश्य था,दारुल हर्ब को दारुल इस्लाम में परिवर्तित करना अर्थात काफिरों के देश को मुसलमानों के देश में बदलना| समय-समय में इस्लाम धर्म में अनेक परिवर्तन हुआ था|सैय्यद अहमद, एक धार्मिक नेता थे| इनका उद्देश्य था कि इस्लाम धर्मं में जो परिवर्तन हुआ है, एक बार वह फिर से उसी रूप को प्राप्त हो जाये जैसा कि पैगम्बर मुहम्मद साहब के समय में था| सैय्यद अहमद, अंग्रेजो के साथ ही साथ सिक्खों के खिलाफ भी जिहाद की घोषणा कर दिया|इस आन्दोलन का केंद्र आज का पेशावर था|
  • सैय्यद अहमद नेपेशावर में सिथानी नामक स्थान को अपने आन्दोलन का केंद्र बनाया और पेशावर पर भी कब्ज़ाकर लिया लेकिन बाद में अंग्रेजों ने पेशावर को मुक्त करा लिया और इस विद्रोह को भी दबा दिया गया|सैय्यद अहमद, अंग्रेजों के हांथों 1831 ई० में मारे गये|इस आन्दोलन को विशुद्ध रूप से सांप्रदायिक आन्दोलन कहा जा सकता है|यह आन्दोलन पूरी तरह से मुसलमानों का, मुसलमानों के द्वारा और मुसलमानों के लिए था|

 

कूका आन्दोलन

 

  • कूका आन्दोलन की शुरुआत 1840 ई० मेंशुरू हुआ था|कूका आन्दोलन भी एक धर्मं सुधार आन्दोलन था|समय के साथ साथ सिक्ख धर्म में भी तमाम बुराइयाँ प्रवेश कर गई थीं| इन बुराइयों को दूर करने के लिए भगत जवाहरमल ने कूका आन्दोलन का प्रारम्भ किया|भगत जवाहरमल तो धार्मिक भावना से ही प्रेरित थे किन्तु भगत जवाहरमल के उत्तराधिकारी रामसिंह कूका हुए राम सिंह कूका राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित हो गये|इन्होने इस धार्मिक आन्दोलन को राजनीतिक स्वरुप में परिवर्तित कर दिया|
  • 1849 ई० में लॉर्ड डलहौजी ने पंजाब पर अधिकार कर लिया था|इस तरह पंजाब में सिक्ख शासन की समाप्ति हो गई|पंजाब पर अंग्रेजोंके अधिकार करने के बाद रामसिंह कूका ने इसे सिक्ख धर्म पर हमले के रूप में लिया, इन्होने पंजाब से अंग्रेजों का राज्य समाप्त करके फिर से सिक्खों का राज्य स्थापित करने का संकल्प लिया|इसी उद्देश्य से इन्होने अंग्रेजी शासन का विद्रोह किया| इस विद्रोह का भी दमन कर दिया गया और इन्हें रंगून भेज दिया गया|रंगून में ही राम सिंह कूका की मृत्यु हो गई थी|

 

 

 

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