स्वामी विवेकानन्द
स्वामी विवेकानन्द
- स्वामी विवेकानन्द रामकृष्ण मिशन से सम्बन्धित थे|रामकृष्ण मिशन का एकमात्र उद्देश्य मानव की सेवा करना था|रामकृष्ण मिशन की पृष्ठभूमि स्वामी विवेकानन्द के गुरु रामकृष्ण परमहंस ने तैयार की थी|रामकृष्ण परमहंस कलकत्ता के तारकेश्वर काली मंदिर के पुजारी थे|रामकृष्ण परमहंस को दक्षिणेश्वर सन्त भी कहा जाता है|
- रामकृष्ण परमहंस एक आध्यात्मिक चिंतक थे|इन्होंने ईश्वर को प्राप्त करने के अनेक मार्ग बताये हैं|इसके साथ ही इन्होंने बताया कि ईश्वर को प्राप्त करने के जितने भी मार्ग हैं, उनमें सबसे सरल मार्ग मानव की सेवा करना है|रामकृष्ण परमहंस का मानना था कि मानव ईश्वर का मूर्त रूप है, अतः मानव की सेवा ही ईश्वर की सच्ची सेवा है|
- रामकृष्ण परमहंस के आध्यात्मिक चिंतन से प्रभावित होकर इनके अनेक शिष्य बनें और इनके शिष्यों में से सबसे प्रमुख शिष्य नरेन्द्रनाथ दत्त थे|नरेन्द्रनाथ दत्त जो बाद में विवेकानन्द के नाम से जाने गये, इनका जन्म,1862 ई० में हुआ था और 1902 ई० में 40 वर्षकीअल्पआयु में ही इनकीमृत्यु हो गई थी|
- स्वामी विवेकानन्द अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए 1897ई०में रामकृष्ण मिशन की स्थापना किया|स्वामी विवेकानन्द मानव सेवा पर बहुत अधिक बल दिया करते थे और रामकृष्ण मिशन का भी अंतिम उद्देश्य मानव की सेवा करना ही था| स्वामी विवेकानन्द का मानना था कि मनुष्य के लिए ज्ञान तो आवश्यक है, किन्तुहम जिस समाज में रहते हैं, यदि उस समाज में ज्ञान प्राप्त करनेके पश्चात्मानव की सेवा न कर सके, तो हमारा समस्त ज्ञान निरर्थक है|
- स्वामी विवेकानन्द ने देश में व्याप्त गरीबी और दरिद्रता को समझनेके लिए पूरे देश का भ्रमण किया| स्वामी विवेकानन्द का विचार अत्यन्त गूढ़ था| इन्होंने कहा कि मेरा केवल एक ईश्वर है और वह ईश्वर है, दुनिया के सभी देशों में रहने वाला गरीब|
- स्वामी विवेकानन्द का मानना था कि जन सामान्य के लिए ईश्वर को प्राप्त करने का सरलतम तरीका मूर्ति पूजा ही है|मूर्ति पूजा वह मार्ग है जिसके माध्यम से जन सामान्य ईश्वर को प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है| इस आधार पर इन्होंने मूर्ति पूजा का समर्थन किया|
- 1893ई० में अमेरिका के शहरशिकागो में दुनिया का पहला विश्व धर्म सम्मलेन का आयोजन हुआ|इस सम्मलेन में जाने से पूर्व खेतड़ी के राजा ने नरेन्द्रनाथ दत्त को स्वामी विवेकानन्द नाम दिया|
- स्वामी विवेकानन्दने शिकागो में भारतीय आध्यात्म और चिंतन से सम्बन्धित जो व्याख्यान दिया था, उस व्याख्यान से इन्हें पूरे दुनिया के लोग जानने लगे| स्वामी विवेकानन्द ने भारतीय आध्यात्मिक शक्ति को पूरी दुनिया के सामने रखा|भारतीय आध्यात्मिक शक्ति को पूरी दुनिया के सामने रखते हुए इन्होंने इस बात पर बल दिया कि आध्यात्मिक विकास के क्षेत्र में अभी दुनिया को बहुत कुछ भारत से सीखनाशेष है|
- स्वामी विवेकानन्द सभी धर्मों की एकता में विश्वास करते थे| शिकागो में इन्होंने यह भी कहा था किजिस प्रकार सभी नदियां अपना जलसागर की ओर ले जाती हैं, उसी प्रकार दुनिया के सभी धर्मं ईश्वर की ओर ले जाते हैं| अतः धार्मिक आधार पर किसी भी प्रकार काभेद-भाव नहींकिया जाना चाहिए|विचारों के सम्बन्ध में स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि विभिन्न विचारों के वाद-विवाद से एक नया विचार उत्पन्न होता है,इसलिए वाद-विवाद होना आवश्यक होता है|
- शिक्षित समुदाय के लिए स्वामी विवेकानन्द का विचार था कि जो व्यक्ति पढ़-लिख कर गरीबों के काम नहीं आता है, उसकी मैंनिंदा करता हूँ| स्वामी विवेकानन्द का संदेश था कि जिस देश में रहकर, जिस देश के संसाधनों से आप शिक्षा ग्रहण करके समाज में ऊँचा स्थान प्राप्त करते हैं, आपका पहला कर्तव्य होता है कि समाज में जरुरत मन्द लोगों की सेवा करना चाहिए, इस बात को कभी भी शिक्षित वर्ग को भूलना नहीं चाहिए|
- स्वामी विवेकानन्द के शिकागो व्याख्यान से पूरे दुनिया भर के लोग प्रभावित हुए थे| स्वामी विवेकानन्द के व्याख्यानों से प्रभावित होकर अमेरिका की एक प्रसिद्ध पत्रिका न्यूयार्क हेराल्ड में लिखा गया कि भारत जैसे आध्यात्मिक विधा जैसे देशों में धर्म प्रचारक भेजना एक बेवकूफी ही होगी|
- शिकागो मेंही स्वामी विवेकानन्द ने कहा था कि आने वाले समय में सर्वहारा वर्ग का शासन होगा और इसकी शुरुआत चीन से होगा|
- 1893 ई० में शिकागो में पहला विश्व धर्मं सम्मलेन का आयोजन किया गया था|दूसरा विश्व धर्मं सम्मलेनका आयोजन 1900 ई० में पेरिस में हुआ|इस सम्मेलन मेंभी स्वामी विवेकानन्द ने हिस्सा लिया था|
- स्वामी विवेकानन्द गरीबों की सेवा करने के उद्देश्य से 1897 ई० में रामकृष्ण मठ की स्थापना कलकत्ता में की थी| प्रारम्भ में रामकृष्णमठ की स्थापना कलकत्ता के पास बारानगर में की गई थी,किन्तु इसी वर्ष रामकृष्ण मठ को कलकत्ता केवेल्लूरमें स्थानांतरित कर दिया गया था|
ध्यान रहे – वेल्लोर नामक स्थान कर्नाटक राज्य में स्थित है, किन्तु वेल्लूर कलकत्ता में स्थित है|
- जहाँ एक ओर धर्मं और समाज सुधार आन्दोलन ने मूर्ति पूजा का विरोध किया और मूर्ति पूजा को एक सामाजिक बुराई के रूप में देखा, इसके विपरीत स्वामी विवेकानन्द ने मूर्ति पूजा का समर्थन किया था| इनका मानना था कि मूर्ति पूजा वह आसान तरीका है जिसके माध्यम से जनसाधारण आसानी से ईश्वर का चिंतन कर सकता है इसलिए मूर्ति पूजा का विरोध नहीं होना चाहिए|
- स्वामी विवेकानन्द को 19वीं शताब्दी का नव हिन्दू जागरण का संस्थापक कहा जाता है| रवीन्द्रनाथ टैगोर ने स्वामी विवेकानन्द को आधुनिक राष्ट्रीयआन्दोलनका आध्यात्मिक पिता कहा है|
- मारग्रेटनोबेल स्वामी विवेकानन्द की एक शिष्या थीं| इन्हें सिस्टर निवेदिता के नाम से भी जाना जाता है| सिस्टर निवेदिता आयरलैंड की रहने वाली थीं| स्वामी विवेकानन्द की मृत्यु के पश्चात् इनके विचारों का प्रचार-प्रसाररामकृष्ण मठ सेकरने की जिम्मेदारीसिस्टर निवेदिता ने ही संभाला था|