ज्वार-भाटा और सूर्यग्रहण-चन्द्रग्रहण
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- महासागरीय जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वार-भाटा कहते हैं|महासागरीय जल के ऊपर उठने की क्रिया कोज्वार तथा महासागरीयजल के नीचे गिरने की क्रिया को भाटाकहा जाता है|यह प्रक्रिया सूर्य और चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों अर्थात् गुरूत्वाकर्षण बल के कारण महासागरों में घटित होती है |
- सूर्य की अपेक्षा चन्द्रमा पृथ्वी के अधिक नजदीक है जिसके कारण चन्द्रमा का गुरूत्वाकर्षण बल ज्वार उत्पन्न करने में सूर्य के गुरूत्वाकर्षण बल से अधिक प्रभावी होता है|
- चन्द्रमा पृथ्वी से लगभग 284000 किलोमीटर दूर स्थित है जबकि सूर्य की दूरी पृथ्वी से लगभग 98 करोड़किलोमीटर है|पृथ्वी से अधिक दूरी होने के कारण सूर्य का गुरूत्वाकर्षण बल चन्द्रमा के गुरूत्वाकर्षण बल की अपेक्षा कम प्रभावी होती है|यही कारण है कि सूर्य से छोटा होते हुए भी ज्वार-भाटाउत्पन्न करने में चन्द्रमा के आकर्षण शक्ति कीमुख्य भूमिका होती है |
- ज्वार पृथ्वी पर एक ही समय में दो स्थानों पर उत्पन्न होता है|एक ज्वार चन्द्रमा के सामने वाले भाग पर तथा दूसरा ज्वार इसके ठीक विपरीत वाले भाग पर उत्पन्नहोता है |
- चन्द्रमा के आकर्षण शक्ति के कारण पृथ्वी पर उत्पन्न खिचाव को संतुलित करने के लिए पृथ्वीचन्द्रमा के आकर्षण शक्ति के विपरीत दिशा में बल लगाती है इसे अपकेन्द्रिय बल कहते हैं |पृथ्वी द्वारा चन्द्रमा के आकर्षण शक्ति के विपरीत लगाये गये अपकेन्द्रिय बल के कारण पृथ्वी पर दूसरी तरफ का सागरीय जल भी ऊपर उठ जाता है|यही कारण है कि पृथ्वी पर एक समय में दो स्थानों पर ज्वार आता है |
- इसके अतिरिक्त दोनों ज्वारों के पार्श्व किनारों की जलराशि नीचे चली जाती है क्योंकि दोनों किनारों पर ज्वार के कारण सागरीय जल ऊपर उठ जाता है इसलिए स्वाभाविक रूप से पार्श्व का जल सिकुड़ जाता है अर्थात् सागर जल नीचे चला जाता है जिसे भाटा(Tide)कहते हैं|
- इस प्रकार पृथ्वी पर महासागरीय जल में एक ही समय में दो अलग-अलग स्थानों पर ज्वार और दो अलग-अलग स्थानों पर भाटा(Ebb)उत्पन्न होता है |
- पृथ्वी अपने अक्ष पर परिक्रमा करते हुए 24 घंटे में सूर्य का एक चक्कर पूरा करती है इसलिए 24 घंटे में दो बार ज्वार तथा दो बार भाटा उत्पन्न होता है |पृथ्वी पर प्रतिदिन 12 घंटे 26 मिनट के अंतराल पर ज्वार उत्पन्न होता है |
- जब चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात् सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में आ जाते हैं तो ऐसी स्थिति मेंमहासागरों में दीर्घ ज्वार उत्पन्न होता है|चूँकि जब सूर्य, चन्द्रमा और पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं तब पृथ्वी पर सूर्य एवं चन्द्रमा के गुरूत्वाकर्षण बल का सम्मिलित प्रभाव पड़ता है|अतः सूर्य एवं चन्द्रमा के गुरूत्वाकर्षण बल के सम्मिलित प्रभाव के कारण महासागरों में दीर्घ ज्वार उत्पन्न होता है |इस दशा को सिजिगी (Syzygy) कहते हैं|
- दीर्घ ज्वार अथवा सिजिगी (Syzygy) दो प्रकार के होते हैं –
- युति की दशा
- वियुति की दशा
- जब पृथ्वी की परिक्रमा करते हुए चन्द्रमा, सूर्य एवं पृथ्वी के मध्य आ जाता है ऐसी स्थिति में दीर्घ ज्वार उत्पन्न होता है, इसे युति की दशा कहते हैं |
- जब पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करते हुए सूर्य एवं चन्द्रमा के मध्य में आ जाती है तो भी महासागरों में दीर्घ ज्वार उत्पन्न होता है, इसे वियुति की दशा कहते है |

- निम्न ज्वार– जब पृथ्वी, चन्द्रमा और सूर्य समकोण की स्थिति में होते हैं तब पृथ्वी पर सूर्य एवं चन्द्रमाके गुरूत्वाकर्षण शक्ति का विपरीत प्रभाव पड़ता है अतः पृथ्वी पर न तो चन्द्रमा के आकर्षण शक्ति का प्रभावपड़ता है और न ही सूर्य की आकर्षण शक्ति का प्रभावपड़ता है, परिणामस्वरूप महासागरीय जल में निम्न ज्वार उत्पन्न होता है |
- विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार उत्तरी अमेरिका के तट परस्थित फंडी की खाड़ी में उत्पन्न होता है|इसकी ऊँचाई लगभग 18 मीटर तक होती है |
- गुजरात के दक्षिणी तट पर स्थित खाड़ी को खम्भात की खाड़ी कहते है|संकरी खाड़ियों में ज्वार के समय शक्तिशाली तरंगें उत्पन्न हो जाती हैं जिन्हें हम ज्वारीय तरंग कहते हैं | ज्वारीय तरंगें सबसे ज्यादा कच्छ की खाड़ी और खम्भात की खाड़ी में ही उत्पन्न होती हैं |
- कच्छ की खाड़ी एक दलदली क्षेत्र है|दलदली क्षेत्रहोने के कारण यहाँ ज्वारीय तरंगें अधिक प्रभावी नहीं होती हैं| खम्भात की खाड़ी में अपेक्षाकृत अधिक शक्तिशाली ज्वारीय तरंगें उत्पन्न होती हैं |
- ज्वारीय तरंगों में गतिज ऊर्जा होती है | इन तरंगों का दोहन करने के लिए विद्युत संयंत्र लगाकर विद्युत उत्पन्न किया जाता है|भारत में ज्वारीय तरंग ऊर्जा केन्द्र का खम्भात की खाड़ी में विकास करने का प्रयास किया जा रहा है |
सूर्य ग्रहण एवं चन्द्र ग्रहण
- चन्द्रमा जब पृथ्वी की परिक्रमण करते हुए सूर्य एवं पृथ्वी के बीच में आ जाता है तो सूर्य का प्रकाश पृथ्वी तक नहीं पहुँच पाता है| इस स्थिति को सूर्य ग्रहण कहते हैं |

- जब सूर्य पृथ्वी एवं चन्द्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं तो सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी के होने के कारण सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नहीं पहुँच पाता है|इस स्थिति को चन्द्रग्रहण कहते हैं |

- एक वर्ष में अधिकतम 7 सूर्य ग्रहण एवं चन्द्रग्रहण हो सकते हैं |पूर्ण सूर्य ग्रहण की स्थिति में भी चन्द्रमा सूर्य को पूरी तरह से ढंक नहीं पाता है,सूर्य के शेष बचे भाग को कोरोना (Corona)कहते हैं| सूर्य का कोरोना (Corona)वाला भाग अत्यधिक तेजी से चमकने लगता है, जिसे हीरकवलय कहते हैं |