देवेन्द्र नाथ टैगोर, अन्य

सामाजिक और धर्मं सुधार आन्दोलन

  • राजा राममोहन राय ने हिन्दू धर्मं में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की थी| ब्रह्म समाज उदारवादीविचारों और भावनाओं से प्रेरित था और यह उदारवादी विचार और भावना भारत में ब्रिटिश उदारवादकी ही देन थी|अतः कहा जा सकता है कि ब्रह्म समाज पूरी तरह से पाश्चात्य उदारवादी विचारों से प्रभावित था| ब्रह्म समाज, समाज के प्रति उदारवादी मूल्यों को महत्व देता था|
  • 1830 ई०में भारतीय मांगों को ब्रिटिश सरकार के समक्ष रखने के लिए राममोहन राय ब्रिटेन गये|ब्रिटेन जाने से पूर्व मुग़ल बादशाहअकबर द्वितीय नेराममोहन राय कोराजा की उपाधिप्रदान की थी| ब्रिटेन में ही1833 ई० में राजा राममोहन राय की मृत्यु हो गई| इन्हेंलंदन स्थितब्रिस्टल में दफनाया गया था|
  • राममोहन राय की मृत्यु के पश्चात् ब्रह्म समाज का नेतृत्व द्वारकानाथ टैगोर के हाँथों में आ गया|द्वारकानाथ टैगोर के बाद 1843 ई० में देवेन्द्रनाथ टैगोर ने ब्रह्म समाज के नेतृत्व की जिम्मेदारी संभाली|ध्यातव्य है कि देवेन्द्रनाथ टैगोर नेब्रह्मसमाज का नेतृत्व संभालने सेपूर्व हीतत्कालीन समाज में सुधार करने के उद्देश्य से 1839 ई०मेंतत्त्वबोधिनी सभा की स्थापना की थी|
  • ब्रह्म समाज एक धर्मं के समान था| इसका उद्देश्य कुछ नैतिक नियमों का समावेश करके एक ऐसी नियमावली तैयार करनाथा जो समाज को सुचारू रूप से चलाने में मददगार साबित हो सके|राजा राममोहन राय के नेतृत्व में ब्रह्म समाज बिल्कुल संतुलित रूप से अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए कार्य कर था किन्तु राजा राममोहन राय की मृत्युके पश्चात् इसमें अनेक समस्याएं उत्पन्न हो गईं|
  • केशवचन्द्र सेन आधुनिक भारत के इतिहास में समाज और धर्म सुधार आन्दोलन के क्षेत्र में कार्य करने वाले महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक थे| भारत में राजा राममोहन राय के बाद पाश्चात्य विचारों से प्रभावित लोगों में केशवचन्द्र सेन की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण थी| 1856ई० में केशवचन्द्र सेन ने ब्रह्म समाज का नेतृत्व किया|

 

 

  • केशवचन्द्र सेन उदारवादी विचारधारा के व्यक्ति थे|इन्होंने ब्रह्म समाज को एक उदारवादी आधार प्रदान किया इसलिए इनके समय में ब्रह्म समाज लोगों में अत्यधिक लोकप्रिय होता गया| केशवचन्द्र सेन के नेतृत्व में अपने उदारवादिता के कारण ब्रह्म समाज इतना अधिक लोकप्रिय हो गया कि बंगाल से बाहरपंजाब, मद्रास और उत्तर प्रदेश में भी इसकी शाखाएं खुलने लगीं|
  • केशवचन्द्र सेन की प्रेरणा से ही मद्रास में श्रीधरालू नायडू ने वेद समाज की स्थापना की| इसे दक्षिण भारत का ब्रह्म समाज भी कहा जाता है|
  • केशवचन्द्र सेन की अत्यधिक उदारवादिता के कारण ही ब्रह्म समाज अपने मूल दार्शनिक आधार सेडगमगाने लगा|केशवचन्द्र सेन के समय में ब्रह्म समाज में कुरान तथा बायबिल का भी पाठ और इसका प्रचार-प्रसारकिया जाने लगा|इन क्रियाकलापों के कारण अब अन्य धर्मों के लोग ब्रह्म समाज में मनमाना व्यवहार करने लगे थे|लोगों के द्वारा मनमाना व्यवहार किये जाने के कारण देवेन्द्रनाथ टैगोर नाराज हो गये और 1865ई०में केशवचन्द्र सेन को ब्रह्म समाज के  नेतृत्वकर्ता के पद से हटा दिया|
  • ब्रह्म समाज से निकाले जाने के बाद 1865 ई० मेंही केशवचंद्र सेन ने आदिब्रह्म समाज की स्थापना की| इस प्रकार राजा राममोहन राय के द्वारा स्थापित ब्रह्म समाज में फूट पड़ गया|इसे ब्रह्म समाज में पहली फूटके रूप में जाना जाता है|आदिब्रह्म समाज को बाद में भारतीय ब्रह्म समाज नामदिया गया|
  • केशवचन्द्र सेन महिलाओं की दशा में सुधारों के प्रबल समर्थक थे,इनके द्वारा महिलाओं की स्वतंत्रता पर बहुत अधिक बल दिया गया|केशवचन्द्र सेन पाश्चात्य आधुनिकसमाजों से प्रभावित होकर भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार लाना चाहते थे|
  • यद्यपि केशवचन्द्र सेन समाजमेंमहिलाओं की दशा में सुधारकरना चाहते थे किन्तु इनका वैचारिक विरोधाभाष शीघ्र ही प्रकट हो गया|इन्होंने अपनी 13वर्षकी अल्पवयस्क पुत्री का विवाह कूचविहार के राजा के साथ कर दिया| इसका परिणाम यह हुआ कि केशवचन्द्र सेन के सभी समकक्षी सदस्य इनसे नाराज हो गये, जिससे ब्रह्म समाज में एक और फूट पड़ गई|
  • आदि ब्रह्म समाज से अलग होकर 1878 ई०आनंदमोहन बोस ने साधारण ब्रह्म समाज की स्थापना की|
  • आधुनिक भारत में ब्रह्म समाज पहला मिशनरी आन्दोलन था और केशवचन्द्र सेनपहले मिशनरी थे|वैसे तो ब्रह्म समाज कीस्थापना राजा राममोहन राय ने की थी, किन्तु केशवचन्द्र सेनके समय में ब्रह्म समाज का प्रचार-प्रसार बड़े जोर शोर के साथ किया गया|अतःकेशव चन्द्र सेन को ही आधुनिक भारत का पहला मिशनरी माना जाता है|

 

महाराष्ट्र में धर्मं सुधार आन्दोलन

  • महाराष्ट्र में पाश्चात्य उदारवाद की पहली उपज बाल शास्त्रीको माना जाता है|बाल शास्त्री ने पाश्चात्य उदारवादी विचारों का प्रचार-प्रसार करने के लिए दो पत्र जारी किये थे –

(i)   मुंबई दर्पण

(ii)  दिग्दर्शन

  • महाराष्ट्र में समाज सुधारआन्दोलन की शुरुआत गोपाल हरी देशमुख ने की इन्हें लोकहितवादीभी कहा जाता है| गोपाल हरी देशमुख महाराष्ट्र के तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक स्थितियों से अत्यधिक विचलित थे|महाराष्ट्र की राजनीतिक, सामाजिक स्थितियों में सुधार लाने के लिए इन्होंने अनेक लेख भी लिखे, ऐसे लेखों को शतपत्रे के नाम से जाना जाता है|

 

प्रार्थना समाज

  • जिस प्रकार से बंगाल में ब्रह्म समाज लोकप्रिय हुआ, उसी प्रकार महाराष्ट्र में जो संस्था लोकप्रिय हुई उसे हम प्रार्थना समाज कहते हैं|प्रार्थना समाज कीस्थापना 1867ई०मेंआत्माराम पांडुरंग ने की थी|आत्माराम पांडुरंग ने सबसे पहले 1850 ई० में धर्मं सुधार करने के लिए परमहंस मंडली की स्थापना की थी|
  • परमहंस मंडली स्वतंत्र दार्शनिक आधार नहीं रख सकी| परमहंस मंडली के स्वतंत्र दार्शनिक आधार न रख पाने का कारण यह था कि इन सदस्यों मेंइनके कुछ ईसाई मित्र भी थे|इन ईसाई मित्रों को यह महसूस होने लगा किइस संस्था के माध्यम से ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया जाये|इस संस्था के सदस्य बायबिलका पाठ और ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार करने लगे थेइसलिए परमहंस मंडली अपने उद्देश्यों में सफल नही हो पाया|
  • आत्माराम पांडुरंग ने 1867 ई० में मुंबई में प्रार्थना समाज की स्थापना की|1869 ई० में महादेव गोविन्द रानाडे प्रार्थना समाज के सदस्य बने|महादेव गोविन्द रानाडेप्रार्थना समाज के सबसे लोकप्रिय सदस्य भी ही रहे|महादेव गोविन्द रानाडे ने ही प्रार्थना समाज को लोकप्रिय भी बनाया था|
  • महाराष्ट्र में महादेव गोविन्द रानाडे ने प्रार्थना समाज के माध्यम से स्त्री शिक्षा और विधवा पुनर्विवाह को काफी प्रोत्साहित किया|साथ ही महादेव गोविन्द रानाडे ने बाल विवाह, सती प्रथा, मूर्ति पूजा, बहुदेववाद,जाति प्रथा आदि का खुल कर विरोध किया|

 

  • महादेव गोविन्द रानाडे ने महाराष्ट्र में उदारवादी शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए दक्कन एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना1884 ई० में पुणे मेंकी थी| इन्होंने1891ई० में विडो रिमैरिज एसोसिएशन की स्थापना की|
  • दक्षिण भारत में रानाडे के अतिरिक्त एक अन्य व्यक्ति भारतीय समाज में देखे जाते हैं जिन्होंने महिलाओं की शिक्षा, स्वतंत्रता और मुक्ति पर बल दिया, इन्हेंडी०के० कर्वेके नाम से जाना जाता है |डी०के० कर्वेने अपना सारा जीवन महिलाओं की सामाजिक दशा में सुधार लाने के लिए समर्पित कर दिया|
  • डी० के० कर्वे ने 1899 ई० में पुणे में विधवा आश्रम की स्थापना की थी,विशेष रूप सेइसका उद्देश्य महिलाओं को शिक्षित करना था|इन्होंने1906 ई० में मुंबई में भारतीय महिला विश्वविद्यालय की स्थापना भी की थी|

 

 

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