1857 की क्रांति के कारण – 3

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  • 10 मई, 1857ई० को मेरठ में सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और दिल्ली की ओर चल पड़े|11मई, 1857 ई० को दिल्ली पहुंचकर सैनिकों ने 12मई को दिल्ली पर अधिकार कर लिया और 12 मई को ही विद्रोहियों के द्वारा मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफर को बादशाह घोषित कर दिया गया|इस प्रकार भारतीय सैनिकों को अखिल भारतीय स्तर पर विद्रोह का एक नेता मिल गया था|
  • दिल्ली पर विद्रोहियों का अधिकार होते ही ये बात पूरे भारत में फ़ैल गई और जो लोग भी अंग्रेजों से असंतुष्ट थे, वे सभी विद्रोही सैनिकोंके साथ मिल गयेऔर अंग्रेजों के खिलाफ आक्रमण कर दिया|
  • 12 मई, 1857 ई० को बहादुरशाह जफर को दिल्ली का बादशाहतो नियुक्त कर दिया गया किन्तु बहादुरशाह एक बुढा व्यक्ति था, वह युद्ध करने में सक्षम नहीं था, इसलिए सैनिकों का नेतृत्व करनेके लिए बख्त खां को दिल्ली विद्रोह का नेता बनाया गया|दिल्ली विद्रोह को दबाने के दौरान दिल्ली में अंग्रेज रेजिडेंट,जॉन निकल्सन मारा गया|

 

 

  • जॉन निकल्सन के बाद अंग्रेज सैनिकों का नेतृत्व हडसन ने किया|हडसन ने दिल्ली पर दुबारा अधिकार करने में सफलता प्राप्त की थी|विद्रोह पर सफलता प्राप्त करने के बाद बहादुरशाह की खोज शुरू हुई| बहादुरशाह को हुमायूँ के मकबरे से प्राप्त किया गया|बहादुरशाह जफर के दोनों पुत्रों की हत्या कर दी गई और इन्हें रंगून भेज दिया गया|वहीं पर बहादुरशाह जफर की अज्ञातवास में मृत्यु हो गई|
  • दिल्ली में विद्रोह के समय उस समय के मशहूर शायर मिर्जा ग़ालिब थे|मिर्जा ग़ालिब ने लिखा है कि,“मेरे आँखों के सामने केवल रक्त का समन्दर है|”
  • दिल्ली के बाद विद्रोह का प्रमुख केंद्र लखनऊ बना|1856 ई० में लॉर्ड डलहौजी ने अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर अवध का ब्रिटिश साम्राज्य में विलय कर लिया था| अवध के नवाब वाजिदअली शाह को अपनी गद्दी छोडनी पड़ी थी|
  • वाजिदअली शाह की रानी बेगम हजरत महल ने 4 जून को अल्प वयस्क पुत्र विरजिद कादीर को अवध का नवाब घोषित कर दिया और भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया|बेगम हजरत महल अत्यन्त वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ी|

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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  • बेगम हजरत महल ने स्वयं हांथी पर सवार होकर युद्ध के मैदान में अपने सैनिकों का नेतृत्व किया|किन्तु इस युद्ध में रानी को सफलता प्राप्त नहीं हुई और अंग्रेज सेनापति कैम्पबेल ने दुबारा अवध पर अधिकार करनेमें सफलता प्राप्त की|बेगम हजरत महल पराजित हुईं और नेपाल चली गईं, वहीं पर इनकी मृत्यु हो गई|
  • कन्नूर में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय से उनकी पेशवाई छिनकर उन्हें कानपुर में बिठ्ठुर नामक स्थान पर भेज दिया था|बाद में डलहौजी के कार्यकाल मेंनाना साहब(जो बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे) दत्तक पुत्रों को दी जाने वाली पेंशन को बंद कर दिया था, इससे नाना साहब नाराज थे|नाना साहब का वास्तविकनाम धोधू पन्त था|

 

 

  • नाना साहब ने स्वयं को पेशवा घोषित किया और भारतीय सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेजों पर आक्रमण कर दिया|नाना साहब ने विद्रोह का कानपुर में नेतृत्व किया|5 जून को कानपुर अंग्रेजों के हाँथ से निकल गया|कानपुर में अंग्रेज स्त्रियों और बच्चों को पकड़कर उनकी हत्या कर दी गई थी|कानपुर के इस घटना को 1857 के विद्रोह के लिए एक धब्बा माना जाता है|
  • अंग्रेज सेनापति कैम्पबेल ने ही कानपुर पर भी दुबारा अधिकार कर लिया|नाना साहब पराजित हुए और नेपाल चले गये गये|कानपुर में नाना साहब के सेनापति तात्या टोपे थे|तात्या टोपे का वास्तविक नाम रामचंद्र पांडुरंग था|
  • झाँसी में गंगाधर राव की विधवा रानी लक्ष्मीबाईथीं|रानी लक्ष्मीबाई का कोई अपना वास्तविकपुत्र नहीं था|डलहौजी की नीतियों के कारण इनके दत्तक पुत्र को झाँसी की गद्दी नहीं मिल पाई थी|झाँसी की गद्दी इनके दत्तक पुत्र से छीनकर उसे ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया था|

 

 

 

  • रानी लक्ष्मीबाई अपने पुत्र को गद्दी न मिलने के कारण अंग्रेजों से नाराज थीं, इसलिए इन्होने विद्रोही सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेज सैनिकों पर आक्रमण कर दिया,सर ह्यूरोज ने झाँसी को चारो ओर से घेर लिया|रानी झाँसी से कालपी की ओर रवाना हो गईं|ह्यूरोज, रानी का पिछा करता हुआ कालपी पहुँच गया, रानी कालपी में भी ह्यूरोजकी सेना से पराजित हुईं|रानी उसी समय वहाँ से निकलर ग्वालियर चली गईं|
  • ह्यूरोज और झाँसी की रानी के मध्य अंतिम युद्धग्वालियर में हुआ|ग्वालियर में रानी ने ह्यूरोज का वीरतापूर्वक सामना किया और ह्यूरोज से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं|
  • ग्वालियर में तात्या टोपे ने रानी लक्ष्मीबाई का साथ दिया था|जब रानी लक्ष्मीबाई ग्वालियर में लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं तो अंग्रेज सेनापति सर ह्यूरोज ने कहा था कि,“भारतीय क्रांतिकारियों में यही औरत एकमात्र मर्द थी|”
  • बिहार में विद्रोह का नेतृत्व जगदीशपुर के राजा कुँवर सिंह ने किया था|वास्तव में यह अत्यन्त वृद्ध व्यक्ति थे|1857 ई० की क्रांति में कुँवर सिंह एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे,जिन्होंने अंग्रेजों को कई बार पराजित किया था|इनके बारे में ऐसा कहा जाता है कि जब अंग्रेजो के साथ कुँवर सिंह युद्ध लड़ रहे थे,उसी समय अंग्रेजों की एक गोली कुँवर सिंह के बाँह में आकर लग गई,कुँवर सिंह ने अपने तलवार से अपना हाँथकाट कर नदी में बहा दिया था|
  • इलाहबादमें विद्रोह का प्रमुख नेता लियाकत अली थे| इलाहबाद और बनारस के विद्रोह को जनरल नील ने दबाया था|
  • जिस समय वाजिदअली शाह को गद्दी से हटाकर अवध का विलय कर लिया गया था,उस समयफैजाबाद,अवध के अंतर्गत ही आता था|उसी समय फैजाबाद में एक मुस्लिमों के धर्मगुरु मोहम्मद अहमदुल्ला ने अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद का नारा दिया|
  • रूहेलखंड में इस विद्रोह के एकमात्र नेता खान बहादुर थे|यह विद्रोह कुछ ही दिनों तक चला, अंग्रेजों ने शीघ्र ही सभी विद्रोहों को दबा दिया और पूरे क्षेत्र पर अधिकार कर लिया|
  • इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि यह केवल एक हिंसक आन्दोलन था| इसआन्दोलन का अपना कोई स्वरुप नहीं था, अलग-अलग क्षेत्रों में इसके अलग-अलग स्वरूप थे, इसलिए इस विद्रोह काविफलहोना तय था|

 

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